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स्मार्ट मीटर नहीं, स्मार्ट लूट! गुलाबगंज में गूंजा जनविद्रोह.

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People protest against smart meters and inflated electricity bills in Gulabganj – Hunger strike gains public and trader support

Not Smart Meter, but Smart Loot! People’s Uprising Echoes in Gulabganj.

Sitaram Kushwaha, Special Correspondent, Vidisha, MP Samwad.

In Gulabganj, anger over inflated electricity bills and smart meters has turned into a mass movement. Hunger strikers have gained support from traders, farmers, and students. Despite public outrage, no political leader or official has addressed the issue, raising serious questions about neglect, exploitation, and administrative silence.

MP संवाद, विदिशा, गुलाबगंज में स्मार्ट मीटर के खिलाफ उठी आवाज अब जनांदोलन का रूप ले चुकी है। तीन दिनों से भूख हड़ताल पर बैठे लोगों को अब व्यापारियों, किसानों और आम नागरिकों का खुला समर्थन मिल चुका है।

बिजली के नाम पर जनता का धैर्य अब जवाब दे चुका है। लगातार तीन दिन से भूख हड़ताल पर बैठे लोग अब अकेले नहीं हैं, पूरा गुलाबगंज उनके साथ खड़ा है। स्मार्ट मीटर और बढ़े हुए बिजली बिलों के खिलाफ अब व्यापारी, किसान, छात्र और समाज के हर वर्ग का गुस्सा फूट पड़ा है।

शहर के व्यापारियों ने बिजली विभाग की लापरवाही और समस्याओं को लेकर तीखी प्रतिक्रिया दी। उनका कहना है —
“हम हर महीने समय पर बिल भरते हैं, तो फिर ये स्मार्ट मीटर क्यों? पहले 500 रुपये का बिल आता था, अब 5000 रुपये से ऊपर आने लगा है। आम आदमी कहां जाए? हमने अपने प्रतिष्ठान बंद कर दिए हैं। जब पेट भरने की चिंता हो, तो दुकानदारी कैसे चलेगी? पहले जनता को राहत दो, तभी बाजार चलेगा।”

स्थानीय लोगों का आरोप है कि स्मार्ट मीटर लगने के बाद बिजली के बिल 5 से 10 गुना तक बढ़ गए हैं। जहां पहले महीने में 400–500 रुपये का बिल आता था, अब वही बिल 4000–5000 रुपये तक पहुंच रहा है। इससे गरीब और मध्यमवर्गीय परिवार बुरी तरह प्रभावित हुए हैं।

इस आंदोलन की खास बात यह है कि सिर्फ भूख हड़ताल करने वाले ही नहीं, बल्कि व्यापारी, किसान, छात्र, महिलाएं और हर तबके के लोग इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं।

लोगों के आरोप:

जनता का कहना है कि यह स्मार्ट मीटर योजना नहीं, सुनियोजित लूट है, जो विद्युत मंडल और मीटर कंपनी की मिलीभगत से चल रही है।
सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि अब तक न कोई जनप्रतिनिधि आया, न ही प्रशासन की ओर से कोई ठोस समाधान सामने आया है।
जनता अब खुद कह रही है — “सुनने वाला कोई नहीं है!”

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