ग्राउंड रिपोर्ट: सीधी में कांग्रेस के कमलेश्वर के साथ कड़े मुकाबले में फंसे भाजपा के डॉ राजेश

Ground report: BJP’s Dr. Rajesh stuck in a tough fight with Congress’ Kamleshwar in Sidhi

दिनेश निगम ‘त्यागी’

सीधी । विंध्य अंचल की सीधी से सांसद रहीं रीति पाठक इस बार मैदान में नहीं हैं। भाजपा ने उनके स्थान पर डॉ राजेश मिश्रा को प्रत्याशी बनाया है। बाहर से देखने पर भाजपा का पलड़ा भारी दिखता है लेकिन माहौल एकतरफा नहीं है। कांग्रेस की ओर से मैदान में उतरे पूर्व मंत्री कमलेश्वर पटेल कड़ी टक्कर दे रहे हैं। भाजपा को बगावत का सामना भी करना पड़ा है। पार्टी के राज्यसभा सदस्य अजय प्रताप सिंह पार्टी से इस्तीफा देकर गोंगपा के टिकट पर मैदान में कूद गए हैं। सीधी क्षेत्र में आदिवासी मतदाताओं की तादाद अच्छी खासी है। हर विधानसभा क्षेत्र में काफी तादाद में गोंगपा के परंपरागत वोट बताए जाते हैं। इनके सहारे अजय प्रताप हार जीत के समीकरण बिगाड़ने की कोशिश में हैं। भाजपा को सीट पर कब्जा बनाए रखने के लिए कड़ी मेहनत करना पड़ रही है।

इसलिए कांग्रेस दे पा रही कड़ी टक्कर

विंध्य अंचल की सीधी लोकसभा सीट से सांसद रहीं रीति पाठक को भाजपा ने विधानसभा का चुनाव लड़ाया था। अब वे विधायक हैं। उनके स्थान पर प्रत्याशी बनाए गए डॉ राजेश मिश्रा कांग्रेस के साथ कड़े मुकाबले में फंसते दिख रहे हैं। कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे कमलेश्वर पटेल उन्हें कड़ी टक्कर दे रहे हैं। वजह दो हैं। पहला, क्षेत्र में पटेल सहित पिछड़े वर्ग के मतदाताओं की अच्छी खासी तादाद और दूसरा, भाजपा के राज्यसभा सदस्य अजय प्रताप सिंह का पार्टी से बगावत कर मैदान में उतरना। जहां तक सीधी सीट के राजनीितक मजाज का सवाल है तो 2008 के परिसीमन के बाद यह सामान्य हुई है। तब से सीट पर भाजपा का कब्जा है। 2009 का पहला चुनाव गोविंद मिश्रा जीते थे। इसके बाद 2014 और 2019 के दाे चुनाव भाजपा की ही रीति पाठक जीतीं। 2008 से पहले सीट अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित थी। तब कभी कांग्रेस और कभी भाजपा जीतती थी।

मुकाबला रोचक और कड़ा होने के आसार

सीधी में भाजपा-कांग्रेस के प्रत्याशी बदलने से राजनीतिक सीमकरण भी बदले हैं। जैसे अब तक भाजपा को सिंगरौली क्षेत्र में एकतरफा वोट मिल रहा था, लेकिन इस बार ऐसा नहीं होगा क्योंकि कांग्रेस के कमलेश्वर पटेल का इस क्षेत्र में अच्छा असर है। उनके परिवार के लोग यहां रहते हैं और रिश्तेदारियां भी हैं। कमलेश्वर यहां काफी सक्रिय रहते हैं। पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने समर्थन किया तो क्षत्रिय और उनके प्रभाव वाला वोट भी भाजपा को नहीं मिलेगा। वह कांग्रेस के पास जाएगा। बचा खुचा अजय प्रताप सिंह ले जा सकते हैं। इसके अलावा सीधी क्षेत्र में पिछड़े वर्ग के मतदाताओं की तादाद अच्छी खासी है। कमलेश्वर इस अंचल में पिछड़ों के नेता के तौर पर उभरे हैं। कमलेश्वर के पिता स्व इंद्रजीत कुमार का क्षेत्र में हर कोई सम्मान करता है। इसमें काेई शक नहीं कि भाजपा के डॉ राजेश मिश्रा साफ सुथरी छवि के हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता उनकी बड़ी ताकत है। क्षेत्र में भाजपा का स्थाई वोट बैंक है। हालांकि राजेश बसपा से विधानसभा का एक चुनाव लड़कर हार चुके हैं। वे बाद में भाजपा में आए। बहरहाल, मुकाबला दिलचस्प, रोचक और कड़ा होने के आसार हैं।

भाजपा- कांग्रेस की अपनी-अपनी गारंटियां बने मुद्दे

विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने गारंटियों की बात की थी, इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी गारंटी देने लगे। चुनाव में दोनों की गारंटियां चल रही हैं। भाजपा कहती है कि ‘कोई भी भ्रष्टाचारी नहीं बचेगा यह मोदी गारंटी है। राजनीति में परिवारवाद को पनपने नहीं देंगे, यह मोदी की गारंटी है।’ दूसरी तरफ कांग्रेस पांच वर्गों को न्याय दिलाने की बात कर रही है। इसके साथ पार्टी की लगभग दो दर्जन गारंटियां भी हैं, जिनका प्रचार किया जा रहा है। मतदाताओं को किसकी गारंटियां भाती हैं, यह नतीजों से पता चलेगा। दोनों दलों के अपने राष्ट्रीय और प्रादेशिक मुद्दे हैं। भाजपा केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा कराए गए कार्य गिना रही है तो कांग्रेस उनकी सरकार में किए कार्य बता रही है। कांग्रेस बता रही है कि हम सभी किसानों का कर्ज माफ करने वाले थे, लेकिन भाजपा के आने के बाद ऐसा नहीं हो सका।

भाजपा ताकतवर, कांग्रेस की हालत पतली

चार माह पहले नवंबर 2023 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अपनी 2018 वाली स्थिति बहाल रखी है। पहले भी उसके पास 8 में से 7 सीटें थीं, अब भी हैं। 2018 में क्षेत्र की आठ में से सिर्फ एक सीट सिहावल में कांग्रेस के कमलेश्वर पटेल जीते थे, जबकि 2023 में कांग्रेस के अजय सिंह चुरहट की सीट जीते। कांग्रेस के हालात पिछली बार जैसे इस मायने में भी हैं कि 2018 में अजय सिंह विधानसभा चुनाव हारे थे और 2019 में कांग्रेस ने उन्हें लोकसभा का प्रत्याशी बनाया था। इसी तरह इस बार 2023 में विधानसभा हारे कमलेश्वर को कांग्रेस ने लोकसभा का टिकट दे दिया। अजय सिंह को 2 लाख 86 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से पराजय का सामना करना पड़ा था। कमलेश्वर पटेल कैसा प्रदर्शन करते हैं। यह 4 जून को मतगणना के दिन पता चल सकेगा।

तीन जिलों में फैला है सीधी लोकसभा क्षेत्र

भागौलिक दृष्टि से सीधी लोकसभा क्षेत्र तीन जिलों में फैला है। पिछले चुनाव तक यह दो जिलों सीधी और शहडोल तक था लेकिन बाद में सिंगरौली नया जिला बन गया। इसके बाद इसकी सीमा तीन जिलों को छूने लगी। लोकसभा की सीमा में आने वाले आठ विधानसभा क्षेत्रों में से सीधी जिले की चार विधानसभा सीटें चुरहट, सीधी, सिहावल और धौहनी आती हैं। सिंगरौली जिले की तीन सीटें चितरंगी, देवसर और सिंगरौली हैं जबकि एक सीट व्यौहारी शहडोल जिले की है। इनमें से सिर्फ चुरहट में कांग्रेस का कब्जा है। कांग्रेस के अजय सिंह 27 हजार 777 वोटों के अंतर से जीते हैं। शेष सभी सीटों में भाजपा काबिज है। उसकी जीत का अंतर कुल मिलाकर 2 लाख 2 हजार से ज्यादा है। इससे भाजपा की ताकत का पता चलता है। सीधी का राजनीतिक मिजाज 2007 तक मिला जुला था। 1991 और 2007 में कांग्रेस जीती और 1996 में पूर्व मुख्यमंत्री स्व अर्जुन सिंह की पार्टी तिवारी कांग्रेस से तिलकराज सिंह जीते थे। 1998, 1999 और 2004 के चुनाव में भाजपा ने जीत दर्ज की थी। जैसे ही परिसीमन के बाद सीट सामान्य हुई, उसके बाद हुए तीन चुनावों में भाजपा ने ही बाजी मारी।

क्षेत्र में अजा-जजा, ब्राह्मण, पिछड़ों का दबदबा

परिसीमन से पहले सीधी अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित थी, इससे पता चलता है कि क्षेत्र में आदिवासी मतदाताओं की तादाद ज्यादा है। क्षेत्र की 8 में से 3 विधानसभा सीटें इस वर्ग के लिए आरक्षित हैं। अनुसूचित जाति वर्ग को मिला कर यह ताकत और बढ़ जाती है। इस वर्ग के लिए भी एक विधानसभा सीट आरक्षित है। दोनों वर्ग के मतदाताओं की तादाद 4 लाख के आसपास बताई जाती है। इसके बाद ब्राह्मण और पिछड़े वर्ग के लगभग बराबर 3-3 लाख मतदाता हैं। पिछड़ों में पटेलों के अलावा काछी और यादव बड़ी तादाद में हैं। ब्राह्मणों के एकमुश्त वोट भाजपा के पाले में जाने की संभावना है। जबकि पटेलों के साथ कुछ अन्य पिछड़ी जातियां कांग्रेस के साथ जा सकती हैं। भाजपा के बागी गोंगपा प्रत्याशी अजय प्रताप सिंह क्षत्रियों और आदिवासियों के कुछ वोट ले जा सकते हैं। डॉ राजेश मिश्रा भाजपा से पहला चुनाव लड़ रहे हैं। इससे पहले वे बसपा के टिकट पर विधानसभा का एक चुनाव लड़ चुके हैं। कांग्रेस के कमलेश्वर पटेल जाना माना चेहरा हैं। ऐसे हालात में चुनाव फंसा दिखाई पड़ता है।