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सिर्फ वेबसाइट तक ही सिमटा कामकाज, शिवराज सरकार का आनंद विभाग.

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Work of the Anand Department of the Shivraj government is confined only to the website.

Aanad Department; Madhya Pradesh; Sahara Samachaar; Shivraj Singh Chouhan; Bhopal;

Manish Trivedi

भोपाल: वर्ष 2016 में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली मध्य प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी सरकार ने आनंद विभाग (Ministry of Happiness) के गठन को मंजूरी दी थी. मोटे तौर पर इसका मूल मकसद राज्य की जनता में खुशहाली का स्तर मापकर उनका जीवन खुशहाल बनाने का प्रयास करना था.

इसकी प्रेरणा मुख्यमंत्री चौहान को भूटान के राष्ट्रीय खुशहाली सूचकांक से मिली थी. इसलिए मध्य प्रदेश का एक ‘हैप्पीनेस इंडेक्स’ जारी करने की भी बात कही गई थी, जो राज्य की जनता में खुशहाली का स्तर बताता.

मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाले उनके इस विभाग के कामकाज की गंभीरता का पता इससे भी चलता है कि संस्थान के कार्यों के निष्पादन हेतु 28 पद स्वीकृत हैं, जिनमें से 13 रिक्त हैं. वहीं, वेबसाइट पर जिन 17 पदाधिकारियों का उल्लेख है, उनमें सामान्य सभा के अध्यक्ष के तौर पर मुख्यमंत्री, कार्यपालन समिति के अध्यक्ष के तौर पर राज्य के प्रमुख सचिव और सीईओ के अलावा बाकी 14 पदों में से 7 रिक्त हैं.

द वायर में आनंद विभाग के ऊपर एक रिपोर्ट के अनुसार आनंद विभाग पर एक रिपोर्ट के अनुसार 

संस्थान की ओर से आनंद के विषय पर शोध/अनुसंधान के लिए ‘आनंद रिसर्च फेलोशिप’ भी जारी की जाती है, लेकिन आज तक कोई शोध प्रकाशित नहीं हुआ है.

लोगों के जीवन में आनंद घोलने का बजट 10 पैसा प्रति व्यक्ति है

आनंद विभाग का गठन एक स्वतंत्र विभाग के रूप में हुआ था. वर्ष 2018 में सरकार बदलने पर इसका विलय अध्यात्म विभाग में कर दिया गया. वापस भाजपा की सरकार आने पर इसे फिर से स्वतंत्र कर दिया गया.

वर्ष 2022-23 में इसको 5 करोड़ का बजट आवंटित हुआ था, जिसमें 2 करोड़ वेतन भुगतान, कार्यालय किराया, बिजली-पानी व्यय, प्रकाशन एवं प्रचार-प्रसार के लिए थे. 3 करोड़ का पोषण अनुदान था, जिससे विभाग को आनंद के प्रसार के कार्यक्रमों का संचालन करना था. विभाग केवल 4.22 करोड़ की राशि खर्च कर सका.

वित्तीय वर्ष 2021-22 के उपलब्ध दस्तावेज बताते हैं मुख्यमंत्री के इस महत्वाकांक्षी विभाग द्वारा आनंद के प्रसार के लिए चलाए जाने वाले सभी कार्यक्रमों पर केवल 79 लाख रुपये खर्च किए गए, जो राज्य की लगभग 8 करोड़ आबादी के लिहाज से लगभग 0.10 पैसा प्रति व्यक्ति होता है.

हालांकि, इस बजट को पर्याप्त मानते हैं. उनका कहना है, ‘हम वालंटियर (स्वयंसेवी) के जरिये काम करते हैं. यह एक नई अवधारणा लाने की शुरुआत है, समय तो निश्चित तौर पर लगेगा. बजट हमारे लिए पर्याप्त है, कोई समस्या नहीं है.’

आनंद विभाग’ या ‘सरकारी अधिकारी/कर्मचारी आनंद विभाग?’

स्वयंसेवी आनंदकों (84 हजार से अधिक) में बड़ी संख्या में शासकीय सेवक शामिल हैं (दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के मुताबिक 40 फीसदी से अधिक), उनमें भी शिक्षा विभाग के कर्मियों की संख्या इनमें अधिक है. अशासकीय व्यक्तियों में समाजसेवी, पत्रकार जैसे ज़मीनी सक्रियता वाले पेशों के लोग शामिल हैं. वहीं, वेबसाइट पर उपलब्ध 268 आनंदम सहयोगियों की सूची में 60 फीसदी से अधिक शासकीय कर्मचारी हैं.

भले ही पूरी योजना को वॉलंटियर रूप से सफल बनाने का ख्वाब देखते हों लेकिन द वायर से बातचीत में ‘अशासकीय आनंदम सहयोगी’ कहते हैं कि हम काम-धाम छोड़कर अपने मन की संतुष्टि के लिए लोगों में खुशियों बांटने के प्रयास करते हैं, तो कम से कम विभाग को हमारे पानी-पेट्रोल का खर्च तो देना ही चाहिए.

विभाग के गठन के समय राज्य का हैप्पीनेस इंडेक्स जारी करने को इसका सबसे महत्वपूर्ण कार्य बताया गया था. आईआईटी खड़गपुर के साथ एमओयू पर हस्ताक्षर करने के अलावा तत्कालीन अधिकारियों ने सरकारी खर्च पर भूटान के दौरे भी किए थे. लेकिन, तब से अब तक नतीजा सिफर ही रहा है. कभी कोरोना, तो कभी किसी अन्य कारण से बार-बार राज्य आनंद संस्थान की ओर से इंडेक्स जल्द ही जारी करने का आश्वासन दिया जाता है.

वेबसाइट पर उपलब्ध विभागीय कामकाज की उपरोक्त जानकारी किसी को भी बेहद आकर्षक लग सकती है लेकिन ज़मीनी हक़ीक़त कुछ और है. ‘द वायर’ ने इस दौरान कई ‘आनंदम सहयोगी’ से बात की. इनमें एक डॉ. सत्य प्रकाश शर्मा भी थे. उनका नाम वेबसाइट पर ग्वालियर के ‘आनंदम सहयोगी’ के रूप में दर्ज है.

द वायर से बातचीत में उन्होंने बताया, ‘जो भी दिख रहा है वो केवल कागजों में है, धरातल पर शून्य है. आपको केवल संस्थान के ईमेल मिलेंगे, वेबसाइट पर सब कुछ मिलेगा, ज़मीन पर कुछ भी नहीं है. विभाग की सक्रियता केवल फोटो खिंचवाकर अपलोड करने तक है. थोड़ी-बहुत गतिविधियां कर देते हैं, जिससे फोटो बन जाते हैं और वेबसाइट पर अपलोड हो जाते हैं. कुल मिलाकर यह केवल एक वेबसाइट के अलावा और कुछ नहीं है.

डॉ. शर्मा के दावों की ज़मीनी पड़ताल की और राज्य के विभिन्न तबकों से जुड़े लोगों से बात करके जाना कि वह ‘आनंद विभाग ’ या ‘राज्य आनंद संस्थान’ के कामकाज को किस तरह देखते हैं या उसके कामकाज के बारे में कितना जानते हैं.

शिवपुरी और श्योपुर ज़िलों में आदिवासी समुदाय के बीच पोषण, स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार आदि समस्यों पर सक्रियता से काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता अजय यादव को तो पता ही नहीं है कि ऐसा कोई विभाग भी है जो लोगों का जीवन खुशहाल बनाने के लिए कार्य करता है. ‘मैं करीब दशकभर से वंचित तबकों के बीच काम कर रहा हूं, लेकिन मैंने आज तक आनंद विभाग या राज्य आनंद संस्थान का नाम ही नहीं सुना और न ही कभी इसके द्वारा किया गया कोई आयोजन देखा.’

सिवनी ज़िले के केवलारी खेड़ा गांव के किसान सतीश राय, जो किसान संबंधी समस्याओं पर भी मुखर रहते हैं, को भी नहीं पता कि लोगों के जीवन में आनंद का प्रसार करने के लिए भी कोई विभाग काम कर रहा है. वे आगे कहते हैं, मेरे जैसे सक्रिय किसान को भी ऐसे किसी विभाग या उसके कार्यक्रमों और आयोजनों की जानकारी नहीं है. कोई भी ग्रामीण इस विभाग की गतिविधियों के बारे में नहीं बता पाएगा कि इसके कार्यक्रम कब और कहां होते हैं.’

पूरे राज्य में पोषण, स्वास्थ्य, महिला एवं बाल अधिकार और नागरिक अधिकारों पर काम करने वाली भोपाल की एनजीओ विकास संवाद के राकेश मालवीय को विभाग के गठन का तो पता है लेकिन ज़मीन पर उसकी सक्रियता उन्होंने कभी नहीं देखी. विभाग के संबंध में सवाल करते ही उन्होंने कहा, ‘विभाग अस्तित्व में हो, तब तो उस पर बात की जाए. बस खानापूर्ति के लिए कागजों में बना दिया है, लेकिन आज तक ज़मीन पर उसका कहीं काम नहीं देखा. समझ ही नहीं आता कि यह अस्तित्व में है भी या नहीं?’

आरटीआई कार्यकर्ता अजय दुबे कहते हैं, ‘आम आदमी को इसकी जानकारी इसलिए नहीं है क्योंकि न तो उसके जीवन में आनंद बढ़ा है और न उसे इस पर भरोसा है. इस विभाग की उसके शब्दकोष में जगह ही नहीं है.’

राजधानी भोपाल स्थित राज्य के एक बड़े मीडिया हाउस के वरिष्ठ संवाददाता बताते हैं, ‘शुरुआती एक साल तो लगा था कि कुछ हो रहा है. हैप्पीनेस इंडेक्स के लिए आईआईटी (खड़गपुर) के साथ एमओयू किया गया. भूटान, अमेरिका, यूएई से लोग बुलाकर कार्यशाला आयोजित की गई. उसके बाद सब ठंडा पड़ गया. विभाग के लोग क्या कर रहे हैं, कब कर रहे हैं, कहां कर रहे हैं, कुछ नहीं पता.’

सबसे रोचक बात तो यह है कि विभाग के गठन की नींव रखने वाले और उसके अध्यक्ष मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की पार्टी भाजपा के लोगों को ही विभाग के कामकाज की जानकारी नहीं है. द वायर ने भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता राजपाल सिसौदिया से जब विभाग के कामकाज और हैप्पीनेस इंडेक्स अब तक जारी न होने के संबंध में प्रश्न किए तो वह पूछने लगे कि क्या आपने विभाग के अधिकारियों से बात की है.

लेकिन, उनके पास यह जवाब नहीं था कि ‘आनंद विभाग’ क्या काम कर रहा है.

संस्थान के मुख्य कार्यपालन अधिकारी (सीईओ) अखिलेश ने ‘द वायर’ को भी ऐसा ही आश्वासन दिया और कहा कि हमारी तैयारी पूरी है, अब चुनाव बाद इंडेक्स जारी किया जाएगा.

भोपाल संभाग की एक आनंदम सहयोगी बरखा दांगी कहती हैं, ‘हमें आनंद संस्थान द्वारा प्रशिक्षण दिया जाता है, लेकिन पहले यह निशुल्क था, अब भुगतान करना होता है. ऊपर से भोपाल आने-जाने का भी खर्चा होता है और चार दिन प्रशिक्षण के लिए रुकने का खर्च अलग. पैसे लगने के बाद से लोगों की जुड़ने में रुचि कम होने लगी है. हमारे साथ और भी लोग जुड़े थे, लेकिन जब से इन्होंने पैसे लेना शुरू किया तो उन्होंने दूरी बना ली.’

डॉ. शर्मा आरोप लगाते हैं, ‘वर्ष 2016-17 में जब विभाग बना तब बहुत अच्छा था. स्वयं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने इस पर ध्यान केंद्रित किया. आम लोगों में भी उत्साह दिखा. सरकारी कर्मचारियों के साथ-साथ आम लोगों को भी बराबर महत्व दिया गया और उन्हें नोडल ऑफिसर, ज़िला समन्वयक या आनंदम सहयोगी बनाया गया. बाद में इसमें राजनीतिक जुड़ाव रखने वाले लोग घुस आए और उन्होंने इसे अपनी ऐशगाह बना लिया.’

प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता रवि सक्सेना आरोप लगाते हैं, ‘आनंद विभाग भाजपा के आनुषांगिक संगठन आरएसएस के लोगों को आनंदित करने के लिए बनाया गया था. आज भी इसमें वही लोग आनंद ले रहे हैं, प्रदेश के किसी व्यक्ति को तो आनंद मिला नहीं. जनता की खुशहाली के लिए यह कोई काम नहीं करता.

आंकड़े भी कहते हैं ‘आनंद विभाग’ की विफलता की कहानी

एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, साल दर साल राज्य में आत्महत्या की घटनाओं में इजाफा हो रहा है.

विभाग के गठन से पहले वर्ष 2015 में राज्य में आत्महत्या की दर 7.7 फीसदी थी, जो 2021 में बढ़कर 9.1 फीसदी हो गई. विभाग सरकारी कर्मचारियों और छात्रों के बीच सर्वाधिक सक्रियता का दावा करता है, लेकिन छात्र आत्महत्या के मामले में 2021 में मध्य प्रदेश देश में दूसरे पायदान पर रहा और सरकारी कर्मचारियों की आत्महत्या के मामले में चौथे पायदान पर. वहीं, 2016 में राज्य में 2,170 दैनिक वेतनभोगियों ने आत्महत्या की थी, जबकि 2021 में यह संख्या दोगुने से भी अधिक 4,657 हो गई.

नीति आयोग के स्वास्थ्य सूचकांक 2020-21 में मध्य प्रदेश 19 राज्यों में 17वें पायदान पर है. आयोग के मुताबिक मध्य प्रदेश शिक्षा के क्षेत्र में सातवां सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला राज्य है, जबकि विभाग से शिक्षक और छात्र ही अधिक जुड़े हैं.

उपरोक्त आंकड़े पर्याप्त हैं यह बताने के लिए कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की नाक के नीचे ही काम कर रहा उनका महत्वाकांक्षी ‘आनंद विभाग’ प्रदेशवासियों को आनंद की कितनी अनुभूति करा पाया है.

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