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आवास योजना की लापरवाही से सड़क पर 80 वर्षीय महिला और उसका परिवार.

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80-year-old woman homeless in Lohari due to PM Awas Yojana delay – mpsamwad.com

Due to negligence in the housing scheme, an 80-year-old woman and her family are forced to live on the streets.

Special Correspondent, Dhar, MP Samwad.

Negligence in PM Awas Yojana has left an 80-year-old widow and her family homeless in Lohari village, Dhar. Promised a house, their hut was demolished but no help followed. The family now lives under a tree, battling rain and fear while officials pass blame. A chilling reminder of ground realities.

MP संवाद, धार/कुक्षी: जिले की कुक्षी तहसील के ग्राम लोहारी में सरकारी तंत्र की लापरवाही और संवेदनहीनता ने एक गरीब परिवार की ज़िंदगी नर्क बना दी है। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मकान स्वीकृत होने के बावजूद 80 वर्षीय विधवा गौरा बाई, उसकी विधवा बहू राधा बाई और तीन मासूम बच्चे अब भी खुले आसमान के नीचे जीवन बिताने को मजबूर हैं।

परिवार की झोपड़ी की दीवार 10 महीने पहले गिर गई थी। इसके बाद पटवारी और पंचायत सचिव ने आवास स्वीकृति का वादा कर झोपड़ी तुड़वा दी, लेकिन आज तक घर नहीं बना। अब पूरा परिवार पेड़ के नीचे दिन बिताता है और बारिश के बीच खुले में खाना पकाता है।

अधिकारियों की असंवेदनशीलता और गैर-जिम्मेदारी
ग्राम पंचायत सरपंच अमर सिंह वास्केल और जनपद सीईओ कंचन वास्केल का रवैया बेहद असंवेदनशील रहा। पीड़िता का आरोप है कि जब उन्होंने मदद की गुहार लगाई तो जनपद सीईओ ने कहा—”हम कुछ नहीं कर सकते!” पंचायत अब जॉब कार्ड में त्रुटि बताकर आवास देने से मना कर रही है।

125 किलोमीटर दूर भेजा आवेदन करने!
सरपंच का बयान भी चौंकाने वाला है। उन्होंने कहा कि बुजुर्ग महिला को “धार जनसुनवाई” में जाकर आवेदन देना चाहिए, जबकि इतनी वृद्ध महिला के लिए 125 किलोमीटर की दूरी तय करना लगभग असंभव है।

प्रशासन ने अब मानी चूक, दी तसल्ली
धार जिला पंचायत सीईओ अभिषेक चौधरी ने माना कि राधा बाई का जॉब कार्ड डुप्लीकेट था, जिससे तकनीकी समस्या हुई। हालांकि, उन्होंने यह भी बताया कि “आवास प्लस सर्वे 2025” में उनका नाम जोड़ दिया गया है और ग्राम पंचायत को निर्देश दिए गए हैं कि प्रभावित परिवार को किसी सुरक्षित सरकारी भवन में अस्थाई आश्रय दिया जाए।

यह एक मामला नहीं, बल्कि सिस्टम की असलियत है
यह मामला सिर्फ एक बुजुर्ग महिला का नहीं, बल्कि सिस्टम की खामियों और योजना के जमीनी क्रियान्वयन पर बड़ा सवाल है। अगर योजनाएं ज़रूरतमंदों तक नहीं पहुंच रही हैं, तो करोड़ों खर्च करने का औचित्य क्या है?

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