Ground report: Dissatisfaction over development, BJP benefits from candidate’s image of hardline Hindu leader
- लोकसभा सीट- देवास: प्रत्याशी- महेंद्र सिंह सोलंकी भाजपा, राजेंद्र मालवीय कांग्रेस
- महेंद्र सोलंकी को आसपास कोई मुस्लिम पसंद नहीं- कांग्रेस के राजेंद्र का संपक इंदौर में, देवास में बेअसर
मालवा अंचल की अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित देवास लोकसभा सीट से भाजपा ने अपने सांसद महेंद्र सिंह सोलंकी को लगातार दूसरी बार मौका दिया है। क्षेत्र में महेंद्र की पहचान कट्टर हिंदूवादी नेता की है। वे अपने आसपास या मंच पर भी किसी मुस्लिम की मौजूदगी पसंद नहीं करते। कहा यहां तक जाता है कि यदि कोई पत्रकार मुस्लिम है तो वे उसको भी इंटरटेन नहीं करते। इसीलिए िवकास को लेकर असंतोष होने के बावजूद देवास में माहौल भाजपा के पक्ष में है। इसके विपरीत कांग्रेस के राजेंद्र मालवीय की पहचान मात्र इतनी है कि वे पार्टी के वरिष्ठ नेता रहे स्व राधाकिशन मालवीय के बेटे हैं। राजेंद्र का व्यवसाय इंदौर में है। इस नाते उनका संपर्क इंदौर में ही ज्यादा है। देवास से उनका कोई लेना-देना नहीं है। उनका प्रचार भी दो-चार दिन पहले ही प्रारंभ हुआ है। पार्टी के वरिष्ठ नेता सज्जन सिंह वर्मा ही उनके लिए मेहनत करते दिख रहे हैं।
भोपाल। देवास लोकसभा सीट का गठन 2008 में हुए परिसीमन के बाद हुआ। परिसीमन में शाजापुर सीट को खत्म किया गया था। शाजापुर भी अजा वर्ग के लिए आरक्षित थी। यहां 1996 से लगातार भाजपा के दिग्गज दलित नेता थावरचंद गहलोत जीतते आ रहे थे। लेकिन देवास के गठित होने के बाद 2009 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के सज्जन सिंह वर्मा ने थावरचंद गहलोत को एक लाख से ज्यादा वोटों से हराकर जीत दर्ज की थी। इसके बाद 2014 में भाजपा के सत्यनारायण जटिया और 2019 में भाजपा के ही महेंद्र सिंह सोलंकी ने जीत दर्ज की। इस लिहाज से सीट भाजपा के दबदबे वाली है।लगातार भाजपा का कब्जा होने के बावजूद विकास को लेकर यह क्षेत्र पिछड़ा माना जाता है। नौकरी और रोजगार के लिए देवास के लोग इंदौर पर आश्रित हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए भी यही स्थिति है। हर किसी को इंदौर की ओर देखना पड़ता है। ट्रेन के स्टापेज कम हैंे और देवास से इंदौर के व्यस्ततम रोड के आरओबी का काम अटका पड़ा है। मेट्रो इंदौर से महू पहुंच गई लेकिन देवास की ओर किसी का ध्यान नहीं। क्षिप्रा की सफाई और स्वच्छ करने की योजना उज्जैन और अन्य शहरों में बन रही है लेकिन देवास में कुछ नहीं हो रहा।
आज भी फैक्ट्रियों की गंदगी क्षिप्रा में आकर मिलती है। इन तमाम मुद्दों को लेकर लोगों में भाजपा के प्रति नाराजगी है। प्रत्याशी महेंद्र सिंह सोलंकी की कट्टर हिंदू नेता की छवि विकास काे लेकर पैदा असंतोष पर भारी पड़ रही है। महेंद्र के अंदर कट्टरता इस कदर है कि वे कह चुके हैं कि उन्हें मुस्लिमों के वोट नहीं चािहए। एक बार उन्होंने यह भी कहा था कि भाजपा के मुस्लिम से अच्छा तो कांग्रेस का हिंदू है। पहले तो वे चाहते नहीं कि उनके कार्यक्रम में कोई मुस्लिम आए और आ गया तो उसका परिचय जरूर पूछते हैं। इसकी वजह से भाजपा देवास में इस बार रिकार्ड जीत का सपना देख रही है। दूसरी तरफ कांग्रेस के राजेंद्र मालवीय इंदैारी नेता हैं। देवास में उनका कोई बैकग्राउंड नहीं। भाजपा के साेलंकी का प्रचार काफी पहले प्रारंभ हो गया था क्योंकि वे पहली सूची में ही प्रत्याशी घोषित हो गए थे जबकि कांग्रेस के राजेंद्र ने अभी पांच दिन पहले अपना कार्यालय खोल कर प्रचार प्रारंभ किया है। मालवीय के तुलना में सोलंकी प्रखर वक्ता भी हैं।
विकास पर भारी हिंदू-मुस्लिम के बीच ध्रुवीकरण
चुनाव के जो मुद्दे होते हैं वे देवास के लोगों के बीच भी हैं। भाजपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ रही है। अयोध्या में राम मंदिर का प्रचार हो रहा है। केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा किए गए कार्य गिनाए जा रहे हैं। इसके विपरीत कांग्रेस अपने घोषणा पत्र के 5 न्याय और 24 गारंटियों का प्रचार कर रही है। स्थानीय स्तर पर कांग्रेस बता रही है कि विकास के मामले में इंदौर और दूसरे शहरों की तुलना में किस तरह देवास को उपेक्षित कर रखा गया है जबकि देश और राज्य में लगातार भाजपा की सरकार है। इन मुद्दों से अलग हटकर भाजपा प्रत्याशी महेंद्र सिंह सोलंकी की कट्टर हिंदू नेता की छवि के कारण देवास में हिंदू-मुस्लिम के बीच ध्रुवीकरण बड़ा मुद्दा बन रहा है। हिंदू साेलंकी के पक्ष में लामबंद हो रहा है जबकि मुस्लिम शत प्रतिशत कांग्रेेस के मालवीय के पक्ष में खड़ा है। इसकी वजह से पूरा चुनाव भाजपा की ओर झुका दिखाई पड़ रहा है।
विधानसभा की सभी सीटों पर भाजपा काबिज
चार माह पहले हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने देवास लोकसभा क्षेत्र के तहत आने वाली सभी 8 सीटों में एकतरफा जीत दर्ज की थी। इनमें एक शाजापुर सीट ही ऐसी थी जिसमें भाजपा मात्र 28 वोटों के अंतर से जीती। इसके खिलाफ कांग्रेस प्रत्याशी पूर्व मंत्री हुकुम सिंह कराड़ा कोर्ट भी गए हैं, पर जीत तो जीत है। भाजपा की सभी 8 सीटों में जीत का अंतर 1 लाख 2 हजार 893 वोटों का है। पिछले लोकसभा चुनाव से पहले 2018 में कांग्रेस ने 8 में से 3 विधानसभा सीटों में जीत दर्ज की थी। फिर भी 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा लगभग पौने चार लाख वोटों के अंतर से जीती थी जबकि कांग्रेस के उम्मीदवार क्षेत्र के चर्चित सख्श प्रहलाद सिंह टिपानिया थे। इस बार तो भाजपा के पक्ष में माहौल ज्यादा है। कांग्रेेस प्रत्याशी भी अपेक्षाकृत कमजोर और बाहरी है। ऐसे में भाजपा यदि रिकार्ड जीत का दावा करती है तो गलत नहीं।
देवास क्षेत्र में तीन जिलों की विधानसभा सीटें
देवास संसदीय सीट का भौगोलिक क्षेत्र तीन जिलों को छूता है। ये जिले देवास के अलावा शाजापुर और सीहोर हैं। शाजापुर जिले की सबसे ज्यादा 4 विधानसभा सीटें आगर, शाजापुर, शुजालपुर और कालापीपल देवास क्षेत्र में हैं। सीहोर जिले की एक सीट आष्टा इसमें शामिल है। इसके अलावा देवास जिले की तीन विधानसभा सीटें सोनकच्छ, हाटपिपल्या और देवास इस लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा हैं। जहां तक सीट के राजनीतिक मिजाज का सवाल है तो सभी विधानसभा सीटों में भाजपा का कब्जा है ही, लोकसभा सीट में आमतौर पर भाजपा ही जीतती है। 2009 में एक ही बार कांग्रेस के सज्जन वर्मा जीते हैं वर्ना लगातार भाजपा का कब्जा है। पहले शाजापुर नाम से सीट थी तब 1996 से भाजपा के थावरचंद गहलोत जीत रहे थे और देवास बनने के बाद तीन में से दो चुनाव भाजपा ने ही जीते। 2014 में सत्यनारायण जटिया और 2019 में महेंद्र सिंह सोलंकी। इस बार भी उम्मीद भाजपा के पक्ष में दिखती है।
बलाई, खाती और ब्राह्मणों की तादाद ज्यादा
देवास संसदीय क्षेत्र में सबसे ज्यादा मतदाता बलाई समाज के हैं। इसे ध्यान में रखकर ही भाजपा- कांग्रेस ने इसी समाज के प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं। दोनों प्रत्याशी महेंद्र सिंह सोलंकी और राजेंद्र मालवीय इस समाज के मतदाताओं को ज्यादा से ज्यादा तादाद में अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश में हैं। दूसरे नंबर पर खाती और तीसरे नंबर पर ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या बताई गई है। ब्राह्मणों का झुकाव भाजपा की ओर है जबकि खाती समाज बंटा नजर आ रहा है। इसके अलावा क्षेत्र में ठाकुर, सेंधव, पाटीदार, गुर्जर, जैन तथा बाल्मीकि समाज के मतदाता भी काफी हैं। कांग्रेस के विचारधारा से जुड़े लोगों को छोड़ दें तो अधिकांश समाज भाजपा को साथ जुड़ चुके हैं। आष्टा क्षेत्र में मुस्लिम काफी हैं, ये कांग्रेस की तरफ एकतरफा दिखाई पड़ते हैं।