बालाघाट में गौरीशंकर को कड़ी टक्कर दे रही अनुभा.

Anubha is giving tough competition to Gaurishankar in Balaghat.

कांग्रेस के बागी के कारण समीकरण उलझे, बेटी मौसम की जगह बिसेन को लड़ना पड़ा चुनाव

Due to the rebellion within the Congress, the coalition got entangled, and instead of facing the monsoon, Bisen had to contend with the daughter in the election.

Udit Narayan

भोपाल। प्रदेश सरकार के वरिष्ठ मंत्री और भाजपा के कद्दावर नेता गौरीशंकर बिसेन इस बार बालाघाट में उलझ गए हैं। उन्हें टक्कर दे रही हैं कांग्रेस की अनुभा मुंजारे। अनुभा अब तक निर्दलीय अथवा किसी तीसरे दल की ओर से चुनाव लड़ती रही हैं। हर बार उन्हें अच्छे वोट मिलते रहे हैं। 2018 में वे निर्दलीय मैदान में थी और लगभग 46 हजार वोट लेकर दूसरे स्थान पर थीं। कांग्रेस के विश्वेश्वर भगत तीसरे स्थान पर थे। बालाघाट में कांग्रेस दो चुनाव तभी जीती जब गौरीशंकर बिसेन मैदान में नहीं थे, लेकिन इस बार सीट फंसी दिख रही है। कांग्रेस के बागी विशाल बिसेन के कारण समीकरण उलझे दिख रहे हैं। ऐसे में किसी भी विश्लेषक के लिए यह कह पाना कठिन है कि जीत का ऊंट किस करवट बैठेगा।

प्रचार के अंतिम दिन पहुंचे कमलनाथ-स्मृति

भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों ने प्रचार में पूरी ताकत झोंकी हैं। प्रचार समाप्ति से पहले अंतिम दिन भाजपा की ओर से केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी और कांग्रेस की ओर से पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ बालाघाट पहुंचे। स्मृति ने भाजपा के गौरीशंकर बिसेन को जिताने की अपील की तो कमलनाथ ने कहा कि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बन रही है इसलिए अनुभा को वोट देकर आप भी इसमें सहभागी बने। इससे पहले भाजपा प्रत्याशी के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा जबकि कांग्रेस की ओर से पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे क्षेत्र में आकर पार्टी प्रत्याशियों के लिए वोट मांग चुके हैं।

बेटी मौसम को पीछे कर आगे आए बिसेन

लगभग 71 की उम्र पूरी कर चुके गौरीशंकर बिसेन इस बार चुनाव लड़ने के मूड में नहीं थे। वे अपनी बेटी मौसम के लिए टिकट मांग रहे थे और उन्हें टिकट मिल भी गया था। कांग्रेस ने अनुभा मुंजारे को प्रत्याशी घोषित किया तो मौसम स्थिति बदल गई। भाजपा द्वारा कराए गए एक सर्वे में वे अनुभा के मुकाबले कमजोर दिखीं। इसलिए अंतिम समय में बेटी मौसम की बीमारी का बहाना बना कर गौरीशंकर बिसेन खुद मैदान में उतर गए। मौसम ने चुनाव के लिए नामांकन तक दाखिल नहीं किया। भाजपा ने बाद में गौरीशंकर को ही अधिकृत प्रत्याशी घोषित कर दिया। यह चुनाव उनके लिए भी पहले जैसा आसान नहीं दिख रहा है।

अनुभा मुंजारे का क्षेत्र में दबदबा कम नहीं

अनुभा मुंजारे का क्षेत्र में कम दबदबा नहीं है। वे 2003 से लगातार विधानसभा का चुनाव लड़ रही हैं। 2003 में वे जनता पार्टी के टिकट पर पहला चुनाव लड़ीं और 15 हजार से ज्यादा वोट हासिल किए। वे 2008 में 28 हजार से ज्यादा, 2013 में लगभग 70 हजार और 2018 में लगभग 46 हजार वोट लेने में सफल रही हैं। बालाघाट में अनुभा दो बार नगर पालिका अध्यक्ष रही हैं। इस बार कांग्रेस में आकर वे भाजपा के बिसेन को कड़ी टक्कर दे रही हैं। कांग्रेस के बागी विशाल बिसेन भाजपा प्रत्याशी गौरीशंकर बिसेन के भतीजे हैं। वे जीत-हार के समीकरण प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन उन्हें ज्यादा समर्थन नहीं मिल रहा है।

जातीय समीकरणों में बराबरी पर भाजपा-कांग्रेस

बालाघाट में जातीय समीकरणों के लिहाज से भी भाजपा के गौरीशंकर बिसेन और कांग्रेस की अनुभा मुंजारे लगभग बराबरी पर हैं। क्षेत्र में पवार और लोधी मतदाताओं की बहुतायत है। पवार समाज के लगभग 45 हजार मतदाता भाजपा के बिसेन के साथ दिखाई पड़ते हैं तो लीधी समाज के लगभग 40 हजार मतदाताओं का रुझान अनुभा की तरफ दिखता है। बता दें, बिसेन पवार जबकि अनुभा लोधी समाज से ही हैं। इसके अलावा मुस्लिम और दलित- आदिवासी मतदाता का झुकाव अनुभा की ओर देखता है तो अन्य जातियों पर बिसेन का असर है। दोनों दलों के अपने परंपरागत वोटर तो हैं ही।

भाजपा के मिजाज वाली है बालाघाट सीट

बालाघाट सीट के चुनावी इतिहास पर नजर डालें तो यह भाजपा के मिजाज वाली सीट है। खासकर यह सीट भाजपा के वरिष्ठ नेता गौरीशंकर बिसेन का पर्याय है। वे यहां से सात चुनाव जीत चुके हैं। बिसेन दो बार लोकसभा का चुनाव भी जीते हैं। 1998 के आम चुनाव और 2004 के उप चुनाव में यहां से कांग्रेस के अशोक सिंह सारस्वत जीते लेकिन तब उनके सामने गौरीशंकर बिसेन मैदान में नहीं थे। 1998 में अशोक सिंह के सामने भाजपा से गौरीशंकर बिसेन की पत्नी रेखा बिसने मैदान में थीं और कांग्रेस के अशोक सिंह से लगभग 20 हजार वोटों के अंतर से चुनाव हार गई थीं। 2004 में अशोक सिंह के सामने भाजपा के कैलाश अग्रवाल थे। इस तरह पत्नी को अपवाद के तौर पर छोड़ दें तो गौरीशंकर बिसेन बालाघाट से अब तक विधानसभा का एक भी चुनाव नहीं हारे।

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