मोबाइल और नींद में डूबे गुरु, छात्रों का भविष्य अधर में, शिक्षा विभाग को जागना होगा.


Teachers Lost in Mobile and Sleep, Students’ Future at Stake, Education Department Must Wake Up.
Mohan Nayak, Special Correspondent, Katni, MP Samwad.
Teachers in a Katni government school were caught sleeping and using mobile phones during class, including the principal. This shocking negligence exposes the crumbling state of the education system and betrayal of students’ future. Authorities must act immediately to restore dignity and accountability in schools.
MP संवाद, कटनी। शिक्षा, जिसे समाज का सबसे मजबूत स्तंभ माना जाता है, कटनी जिले के बहोरीबंद जनपद शिक्षा केंद्र के शासकीय ए.एल. राय हायर सेकेंडरी स्कूल, बचैया में उसकी पवित्रता तार-तार हो गई। यहाँ सामने आईं तस्वीरें शिक्षा व्यवस्था की लापरवाही और शिक्षकों की उदासीनता की काली हकीकत उजागर करती हैं।
‘ज्ञान का मंदिर’ कहलाने वाले इस विद्यालय में शिक्षक कक्षा के समय गहरी नींद में सोते और मोबाइल स्क्रीन पर डूबे नजर आए। सबसे शर्मनाक दृश्य यह था कि स्वयं प्राचार्य भी खर्राटों की नींद में खोए मिले। यह न केवल शिक्षा की गरिमा को ठेस पहुँचाता है, बल्कि छात्रों के भविष्य से निर्मम मजाक है।
गुरु का धर्म भूलते शिक्षक, बच्चों का भविष्य दांव पर
हमारी संस्कृति में गुरु को भगवान का दर्जा दिया गया है, लेकिन जब यही गुरु नींद और मोबाइल को प्राथमिकता देते हैं, तो यह बच्चों के भविष्य के साथ विश्वासघात है। छात्र स्कूल इसलिए आते हैं कि उन्हें शिक्षा और मार्गदर्शन मिले, लेकिन जब शिक्षक ही सो जाएँ या मोबाइल में मशगूल हों, तो उनकी मेहनत और अभिभावकों की उम्मीदें धराशायी हो जाती हैं।
यह घटना केवल एक विद्यालय की नहीं, बल्कि पूरे शिक्षा तंत्र की खोखली सच्चाई की झलक है। लाखों रुपये वेतन पाने वाले शिक्षक जब पढ़ाने की बजाय आराम चुनते हैं, तो यह करदाताओं के पैसे की खुली बर्बादी है।
जवाबदेही पर बड़ा सवाल, शिक्षा विभाग पर उंगली
इस घटना ने शिक्षा विभाग की जवाबदेही पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। जब प्राचार्य ही कक्षा के समय नींद में डूबे हों, तो बाकी शिक्षकों से जिम्मेदारी की उम्मीद कैसे की जाए?
ग्रामीण क्षेत्रों में अभिभावक अपनी मेहनत की कमाई बच्चों की पढ़ाई पर खर्च करते हैं, लेकिन जब सरकारी स्कूल आरामगाह बन जाएँ, तो उनकी आशाएँ चकनाचूर हो जाती हैं। मजबूरी में वे निजी स्कूलों की ओर रुख करते हैं, जिससे सामाजिक असमानता और गहराती है।
कटनी का यह मामला शिक्षा विभाग के लिए चेतावनी है। अगर सख्त कार्रवाई कर जवाबदेही तय नहीं की गई, तो विद्यालय ‘ज्ञान का मंदिर’ नहीं बल्कि ‘आरामगाह’ बनते रहेंगे।