भोजशाला में पत्थर पर उकेरे गए कालसर्प यंत्र और सिद्धियंत्र देते है प्रमाण, ब्रिटिश काल के इतिहासकार ने भी किया उल्लेख

धार
जब राजा भोज ने भोजशाला के भव्य भवन का निर्माण करवाया था, तब उन्होंने इसे केवल एक मंदिर की तरह नहीं अपितु धर्म, ज्ञान, विज्ञान, खगोल सहित तमाम तरह की विद्याओं को पढ़ने के केंद्र अर्थात एक विश्वविद्यालय के रूप में भी बनाया था।

इस बात का प्रमाण आज भी भोजशाला में पत्थर पर उकेरे गए कालसर्प यंत्र और सिद्धियंत्र देते हैं। भोजशाला पर क्रूर आक्रांताओं के हमले के बाद से सनातन में पूजित इन मंगल यंत्रों पर काले अंधकार की छाया पड़ गई थी।

इसके बाद से ये यंत्र सदियों से पत्थरों पर उकेरे-उकेरे ही खून का घूंट पी रहे थे। किंतु हाल ही में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के आदेश पर जब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने सर्वे किया और इन यंत्रों से समय की धूल हटाई, तो सदियों बाद ये फिर मुस्कुरा उठे हैं।

84 चौराहों और 84 यंत्रों का निर्माण कराया था

ऐतिहासिक भोजशाला में राजा भोज द्वारा निर्मित दो यंत्र आज भी दिखाई देते हैं। कहा जाता है कि राजा भोज ने धार नगर में 84 चौराहों और 84 यंत्रों का निर्माण कराया था। इन सबकी अपनी अलग-अलग विशेषताएं हैं। किंतु भोजशाला पर हुए आक्रमण के बावजूद आज भी कालसर्प योग यंत्र और सिद्धि योग यंत्र सुरक्षित हैं।

पत्थर पर उकेरी संस्कृत व्याकरण

शोधकर्ता विनायक साकल्ले बताते हैं- ब्रिटिश काल में प्रशासनिक अधिकारी और इतिहासकार सीई लुअर्ड ने वर्ष 1916 में उनके द्वारा लिखित गजेटियर में भी इन यंत्रों का उल्लेख किया है। उन्होंने लिखा धार और मांडू में यह दर्शाया गया है कि 11वीं शताब्दी में निर्मित भोजशाला में अलग-अलग शिलापट्ट देखे जा सकते हैं।

यहां दीवारों पर संस्कृत भाषा के दो लेखचित्र प्राप्त हुए थे। इनमें संस्कृत भाषा की वर्णमाला और व्याकरण के नियम उत्कीर्ण हैं। इनकी एक आकृति वक्राकार सर्प जैसी है, वहीं इस सर्प रूपी वर्णमाला या चार्ट के पूंछ में संस्कृत की संज्ञा और व्याकरण को दर्शाया गया है, जो कि प्राचीन संस्कृत शिक्षा पद्धति के अनमोल प्रतीक हैं।

Comments

No comments yet. Why don’t you start the discussion?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *