Analysis… The stature of many leaders increased in BJP, all Congress leaders collapsed.
दिनेश निगम ‘त्यागी’
मध्यप्रदेश के संदर्भ में लोकसभा चुनाव के नतीजे उम्मीद के अनुरूप हैं और चौंकाने वाले भी। उम्मीद के अनुरूप इसलिए क्योंकि भाजपा को 26 से 29 सीटें मिलने की भविष्यवाणी हो रही थी। वह सभी सीटें जीत कर क्लीन स्वीप करने में सफल रही। चौंकाने वाले इस मायने में कि कांग्रेस चारों खाने चित्त हो गई। पार्टी के सभी नेता धराशायी हो गए। कमलनाथ का गढ़ छिंदवाड़ा ध्वस्त हो गया और दिग्विजय सिंह अपने गृह क्षेत्र राजगढ़ में हार गए। कांग्रेस की पुरानी और नई दोनों पीढ़िया बुरी तरह पिटीं और फ्लाप साबित हुईं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी और नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार की युवा जोड़ी कोई कमाल दिखाना तो दूर, अपनी जमा पूंजी भी गंवा बैठी। नतीजों से भाजपा मेंे कई नेताओं का कद बढ़ेगा तो कांग्रेस में नेतृत्व को लेकर नए सिरे से चिंतन-मंथन हो सकता है। केंद्र में सरकार बनने की स्थिति में ज्योतिरादित्य सिंधिया का मंत्री पद बरकरार रह सकता है। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एवं प्रदेश भाजपा अध्यक्ष को अहं जवाबदारी मिल सकती है। मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने चुनाव में सबसे ज्यादा मेहनत की है। अब उन्हें कोई खतरा और चुनौती नहीं। उनका मुख्यमंत्री पद पर बने रहना पक्का है।
कांग्रेस के युवा नेतृत्व ने तोड़ा भरोसा
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ और दिग्विजय सिंह असफल हो रहे थे, उनकी उम्र राजनीित से सन्यास वाली भी है। ऐसे में पार्टी को युवा नेतृत्व से उम्मीद थी। इसे ध्यान में रखकर जीतू पटवारी को प्रदेश अध्यक्ष और उमंग सिंघार को नेता प्रतिपक्ष की जवाबदारी सौंपी गई थी। ये दोनों नेतृत्व के भरोसे पर खरे नहीं उतरे। न ये संगठन संभाल सके, न चुनाव में कोई करिश्मा कर पाए। इनके नेतृत्व में कांग्रेस के अंदर जैसी भगदड़ मची, वह प्रदेश के इतिहास में कभी नहीं देखी गई। पार्टी के अन्य युवा नेताओं नकुलनाथ, कमलेश्वर पटेल, ओमकार सिंह मरकाम, सिद्धार्थ कुशवाहा, जयवर्धन सिंह और विक्रांत भूरिया से पार्टी नेतृत्व को उम्मीद थी। इन्होंने भी भरोसा तोड़ा। नकुल, कमलेश्वर, सिद्धार्थ और ओमकार चुनाव मैदान में थे, लेकिन जीत नहीं सके। जयवर्धन ने राजगढ़ में अपने पिता दिग्विजय सिंह और विक्रांत भूरिया ने रतलाम में अपने पिता कांतिलाल भूरिया के चुनाव संचालन की कमान संभाली थी। ये दोनों भी असफल रहे। दोनों जगह कांग्रेस के इन दिग्गजों को पराजय का सामना करना पड़ा। सवाल यह है कि अब नेतृत्व आजमाए तो किसे?
अजय-अरुण की जोड़ी पर फिर टिकीं निगाहें
प्रदेश कांग्रेस के इस बुरे दौर में पार्टी नेतृत्व की निगाह पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव एवं पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह की जोड़ी पर फिर टिक सकती है। 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले चार साल तक इस जोड़ी ने ही कांग्रेस को मजबूत करने के लिए काम किया था। यह बात अलग है कि चुनाव के कुछ समय पहले अचानक कमलनाथ को लाकर अरुण यादव के स्थान पर प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया था। चुनाव मे ं जीत दर्ज कर पंद्रह साल बाद कांग्रेस ने प्रदेश की सत्ता में वापसी की थी। इसका श्रेय कमलनाथ ले गए थे जबकि जीत की असल हकदार अजय- अरुण की जोड़ी थी। इनके नेतृत्व में कांग्रेस ने चार साल तक संघर्ष कर भाजपा सरकार की नाक में दम कर दिया था। कमलनाथ मुख्यमंत्री बने लेकिन सरकार को संभाल कर नहीं रख सके। इस चुनाव में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली। एेसे में पार्टी के अंदर चिंतन- मंथन तय है। ऐसे समय जब पूरे देश में कांग्रेस का प्रदर्शन अच्छा रहा है, तब मप्र नेतृत्व ने पार्टी को निराश किया। जीतू पटवारी और उमंग सिंघार को अभी ज्यादा समय नहीं हुआ। नेतृत्व इन्हें और मौका देता है या तत्काल कोई निर्णय लेता है। यह देखने लायक होगा।