कुछ तो था उनकी बातों में…

अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिवस पर विशेष 

Sahara Samachaar;

 डॉ.केशव पाण्डेय 

भारत जमीन का टुकड़ा नहीं, जीता जागता राष्ट्रपुरुष है… हिमालय मस्तक है तो कश्मीर किरीट है। यह चन्दन की भूमि है…अभिनन्दन की भूमि है…यह तर्पण की भूमि है…यह अर्पण की भूमि है।….सरकारें आएंगी, जाएंगी, पार्टियां बनेंगी, बिगडेंगी मगर ये देश रहना चाहिए। चूंकि देश सर्वोपरि है और एक राजनेता को अव्वल अपने देश के के लिए पूरी निष्ठा से काम करना चाहिए। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने जब संसद के सत्र में यह बात कही तो वह उस दौर में राजनीतिक  प्रतिबद्धता की गारंटी बन गई। राष्ट्र के प्रति कुछ ऐसी ही सोच रखते थे अटल जी….।

25 दिसंबर को जन्मदिवस पर जानते पत्रकार से प्रधानमंत्री  बनने तक के राजनीतिक सफर की कभी न मिटने वाली अमिट कहानी…

भारतीय राजनीति का जीवंत स्मारक बन चुके पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को आज पूरा देश याद कर रहा है। जन-जन के प्रिय अटलजी अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धता के लिए जाने जाते थे। पंडित जवाहर लाल नेहरू के बाद वह पहले ऐसे व्यक्ति थे जो लगातार दो बार प्रधानमंत्री बने।

अटलजी लगातार 11 वार सदन में पहुंचे। नौ बार लोकसभा और दो बार राज्यसभा के सदस्य रहकर उन्होंने एक कीर्तिमान रचा। इस तरह उन्होंनें करीब पांच दशक तक सक्रिय राजनीति में अपना जीवन व्यतीत किया। 

अटलजी छात्र जीवन के दौरान पहली बार राष्ट्रवादी राजनीति में तब आये जब 1942 में ब्रिटिश उपनिवेशवाद के अंत के लिए शुरू किए गए भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया। उन्होंने पत्रकार के रूप में अपने कॅरियर की शुरुआत की। 1951 में भारतीय जन संघ में शामिल होने के बाद पत्रकारिता छोड़ दी।

आजादी के बाद वे एक ऐसे नेता के रूप में उभरे, जिन्होंने विश्व के प्रति उदारवादी सोच और लोकतांत्रिक आदर्शों के प्रति प्रतिबद्धता को महत्व दिया।

सभ्यता, संस्कृति और वैभवशाली इतिहास से परिपूर्ण इस देश में वे जहां महिलाओं के सशक्तिकरण और सामाजिक समानता के समर्थन की बात करते थे तो वहीं भारत को दुनिया में एक दूरदर्शी, विकसित, मजबूत और समृद्ध राष्ट्र के रूप में आगे बढ़ते हुए देखने की चाह रखते थे।

उद्धरणानुसारः”अपने नाम के ही समान, अटलजी एक प्रतिष्ठित राष्ट्रीय नेता, प्रखर राजनीतिज्ञ, निःस्वार्थ सामाजिक कार्यकर्ता, सशक्त वक्ता, कवि, साहित्यकार, पत्रकार और बहुआयामी व्यक्तित्व वाले व्यक्ति थे”। 

शिक्षा के दौरान अनेक साहित्यिक, कलात्मक और वैज्ञानिक उपलब्धियां उनके नाम रहीं। उन्होंने मासिक पत्रिका-राष्ट्रधर्म, हिंदी साप्ताहिक समाचार पत्र- पाञ्चजन्य के अलावा स्वदेश और वीर अर्जुन जैसे दैनिक समाचार-पत्रों का संपादन किया। उन्होंने,  संसदीय यात्रा, मेरी इक्यावन कविताएं, संकल्प काल, शक्ति से शांति, फोर डीकेड्स इन पार्लियामेंट 1957-95, मृत्यु या हत्या, अमर बलिदान, कैदी कविराज की कुंडलियां और न्यू डाइमेंसंस ऑफ इंडियाज फॉरेन पॉलिसी जैसी पुस्तकें लिखीं।

–प्रधानमंत्री के रूप में उनका कार्यकाल इतना गौरवशाली रहा कि दो दशक के बाद भी उस कार्यकाल को न सिर्फ याद किया जाता है, बल्कि उस पर अमल भी किया जाता है। पोखरण परमाणु परीक्षण, आर्थिक नीतियों में दूरदर्शि्ृता। आधारभूत संरचना के विकास की बड़ी योजनाएं- राष्ट्रीय राजमार्ग और स्वर्णिम चतुर्भुज योजना अनुपम उदाहरण हैं। ऐसे प्रधानमंत्री कम ही हुए जिन्होंने समाज पर इतना सकारात्मक प्रभाव छोड़ा। उनकी प्रशासनिक क्षमता सुशासन का प्रतीक बनी।

अटलजी के 1998-99 के प्रधानमंत्री के कार्यकाल को ’’दृढ़निश्चकय के एक साल’’ के रूप में जाना जाता है। क्योंकि मई 1998 में भारत उन चुनिंदा देशों में शामिल हो गया था जिन्होंने परमाणु परीक्षण को सफलतापूर्वक अंजाम दिया। फरवरी 1999 में पाकिस्तान बस यात्रा ने उपमहाद्वीप की परेशानियों को सुलझाने के लिए एक नए दौर का सूत्रपात किया। दुनिया भर में इसे प्रशंसा मिली। आपसी समझौते के इस मामले में भारत की ईमानदार कोशिश ने वैश्विक समुदाय में अपनी छाप छोड़ी। लेकिन मित्रता को धोखे के रूप में कारगिल का युद्ध मिला। तब अटलजी ने विषम परिस्थितियों का सफलतापूर्वक मुकाबला किया और सेना ने अपने पराक्रम से विजय हासिल की। कारिगल की जंग को प्रति वर्ष विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। 

देश के प्रति उनके निःस्वार्थ समर्पण और 50 वर्ष से अधिक तक देश और समाज की सेवा करने के लिए वर्ष 1992 में भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण दिया गया। 1993 में कानपुर विश्वविद्यालय ने मानद डॉक्ट्रेट की उपाधि से नवाजा। 1994 में उन्हें भारत का ‘सर्वश्रेष्ठ सांसद’ चुना गया। मार्च 2015 में उन्हें सर्वोच्च नागरिक सम्मान ’भारत रत्न’ की उपाधि से अलंकृत किया गया।

अटल बिहारी वाजपेयी एक नेता तो थे ही साथ ही कविताएं भी लिखा करते थे। उन्होंने देश के लिए भी कविताएं लिखीं। पत्रकार से प्रधानमंत्री बने अटलजी ने चार राज्यों से चुनाव जीतकर भारतीय राजनीति में अपनी छाप छोड़ी थी। 

अविवाहित प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने अपनी ईमानदार और निर्लिप्त छवि को कायम रखा। कभी अपना हित नहीं देखा। लोकतंत्रवादी मूल्यों में इतनी गहरी आस्था थी कि हिन्दुत्ववादी होते हुए भी उनकी छवि धर्मनिरपेक्षता वाली रही। अटलजी की विलण प्रतिभा और वाकपुटता को देख, जय प्रकाश नारायण ने कहा था कि “इनके कंठ में सरस्वती का वास है“। जवाहर लाल नेहरू ने वाजपेयी जी को अद्भुत वक्ता की विश्वविख्यात छवि से नवाज था। ऐसे में यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि कुछ तो था उनकी बातों में…जो आज भी लोगों के दिलों-दिमाग पर छाया हुआ है। उनकी जयंती पर शत्-शत् नमन्।।

Comments

No comments yet. Why don’t you start the discussion?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *