चुनावी तैयारी में कांग्रेस आगे!
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यह खबर हैरान करने वाली है, लेकिन एकदम सही है। मप्र में इस वर्ष होने वाले विधानसभा चुनावों की तैयारी में कांग्रेस ने भाजपा को पीछे छोड़ दिया है। कांग्रेस ने 500 आईटी प्रोफेशनल्स की टीम तैयार कर ली है। लगभग 200 लोग दिल्ली और 300 भोपाल में काम कर रहे हैं। इनमें कुछ चुनावी बारीकियों का विश्लेषण, कुछ सोशल मीडिया पर कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनाने और कुछ बूथ मैनेजमेंट पर काम कर रहे हैं। खास बात यह है कि इसकी भनक कमलनाथ और उनके बेहद विश्वसनीय लोगों के अलावा पार्टी के किसी नेता को नहीं है। पिछले दिनों मप्र भाजपा को इसकी भनक लगी तो हडकंप मच गया। भाजपा ने अब ताबड़तोड़ तरीके से आईटी प्रोफेशनल्स की भर्ती शुरु कर दी है। यानि 2023 का विधानसभा चुनाव कुछ हटकर होगा।
एक महिला ने जज को औकात दिखा दी
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यह मामला ग्वालियर चंबल के एक छोटे से शहर का है। इस शहर के न्यायालय में एक प्रथम सत्र न्यायाधीश तैनात हैं। आरोप है कि न्यायाधीश महोदय शहर की नगर पालिका के अफसरों पर दबिश डालकर नियम विरुद्ध सुविधाएं लेते रहे हैं। पिछले दिनों इस नगर पालिका में एक महिला अध्यक्ष निर्वाचित हुई। महिला अध्यक्ष ने न्यायाधीश महोदय की अनावश्यक मांगों को पूरा करने से माफ इंकार कर दिया। न्यायाधीश ने अफसरों को डराना धमकाना शुरु किया तो नगर पालिका अध्यक्ष ने इसकी लिखित शिकायत सुप्रीमकोर्ट व हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सहित मप्र के मुख्यमंत्री व विधिमंत्री से करते हुए उक्त न्यायाधीश के खिलाफ सभी पार्षदों के साथ धरना देने की चेतावनी दे दी है। अब खबर आ रही है कि न्यायाधीश महोदय नगर पालिका अध्यक्ष के पति के जरिये मामले को रफादफा करने की पहल कर रहे हैं।
भोपाल के बड़े होटल में ठेकेदारों की बैठक का रहस्य!
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राजधानी भोपाल में इस सप्ताह एक अफवाह तेजी से वायरल है। इसकी सच्चाई तो नहीं पता, लेकिन यदि यह सच है तो बहुत गंभीर मामला है। अफवाह है कि भोपाल के एक बड़े होटल में मप्र व देश के बड़े ठेकेदारों की बैठक हुई। इस बैठक में 600 करोड़ का चुनावी चन्दा एकत्रित करने पर विचार हुआ। बदले में ठेकेदारों को लगभग 20 हजार करोड़ के एडवांस भुगतान की चर्चा है। ठेकेदार जिस विभाग में काम कर रहे हैं उसे केन्द्र सरकार से लगभग 43 हजार करोड़ रूपए मिले हैं। वैसे मप्र में ठेकेदारों को एडवांस पेमेंट करना कोई नई बात नहीं है। कमलनाथ के समय जल संसाधन विभाग के ठेकेदारों को 700 करोड़ का एडवांस पेमेंट किया गया था। ईओडब्ल्यु ने एफआईआर भी दर्ज की थी। लेकिन किसी भी ठेकेदार के खिलाफ आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
थोड़ी सी भर्तियां, बड़ी बदनामी
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मुख्यमंत्री शिवराज सिंह बड़ी मुश्किल से आदिवासियों के बीच पैठ बनाने की कोशिश करते हैं, लेकिन उनके आसपास तैनात अफसर रायता फैला देते हैं। पेसा कानून का पालन कराने जिला व विकास खंड समन्वयकों की 109 नियुक्तियों को लेकर जबर्दस्त रायता फैल गया है। जयस यानि जय आदिवासी युवा संगठन इसका फायदा उठाकर आदिवासी क्षेत्र में बेरोजगार युवाओं को सरकार के खिलाफ भड़काने में सफल होता नजर आ रहा है। दरअसल 20 जिला व 89 विकास खंड समन्वयकों की नियुक्तियों के लिए उद्यमिता विकास केन्द्र ने विज्ञापन जारी किया था। एक लाख से अधिक बेरोजगारों ने 500 रुपये फीस के साथ आवेदन किये। केन्द्र ने आवेदकों की मैरिट लिस्ट भी तैयार कर ली और इंटरव्यू के लिए पत्र भी जारी हो गए। अचानक सरकार ने उद्यमिता विकास केन्द्र को पत्र लिखकर यह भर्तियां रोक दीं। एमपीकोन को आउटसोर्सिंग के जरिये यह भर्तियां करने को कह दिया गया। आरोप है कि अफसरों ने एमपीकोन को भर्ती होने वाले युवाओं की सूची भी सौंप दी गई। इनमें अधिकांश युवक राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ एवं भाजपा के दायित्ववान कार्यकर्ता हैं। जयस इस मुद्दे पर आगबबूला है। उसने इन थोड़ी सी भर्ती को आदिवासी युवाओं के बीच बड़ा चुनावी मुद्दा बना दिया है।
चर्चा में मंत्रीजी की एक ढक्कन शराब!
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हमने इसी काॅलम में छापा था कि मप्र के एक मंत्रीजी अपनी शराब की लत से परेशान होकर कुछ मित्रों के साथ हरिद्वार के गायत्री मंदिर पहुंचे थे। जहां उन्होंने शराब न पीने का संकल्प लिया था। हरिद्वार से लौटकर मंत्रीजी के मित्रों ने उनके परिवार के सदस्यों की ड्यूटी लगाई कि यदि मंत्रीजी शराब पीएं तो बताना। कुछ दिन तो मंत्रीजी ने शराब से हाथ नहीं लगाया, लेकिन तलब बढ़ने लगी तो पत्नी को इस बात के लिए राजी कर लिया है कि जिस तरह तेज खांसी होने और गला खराब होने पर कफ सिरफ लेते हैं, उसी तरह शराब के बिना उनका गला सूखता है तो रोज सिर्फ एक ढक्कन शराब दवा की तरह लेने दो। फिलहाल उनकी एक ढक्कन शराब भी उनके बंगले पर चर्चा का विषय बनी हुई है।
पांच लाख सरकारी कर्मचारियों की उम्मीदें जगीं!
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भाजपा शासित राज्य कर्नाटक से निकली एक खबर ने मप्र के लगभग 5 लाख सरकारी कर्मचारियों की उम्मीदें जगा दी हैं। दरअसल अभी तक किसी भी भाजपा शासित राज्य ने सरकारी कर्मचारियों के लिये पुरानी पेंशन देने पर विचार नहीं किया है। जबकि कांग्रेस शासित सभी राज्यों में पुरानी पेंशन बहाल कर दी गई है। कर्नाटक सरकार ने पुरानी पेंशन बहाल करने एक कमेटी बनाई है जो कांग्रेस शासित राज्यों में पहुंचकर पुरानी पेंशन देने का अध्ययन करेगी। यदि कर्नाटक में पुरानी पेंशन देने का फैसला हुआ तो मप्र में उम्मीद बन सकती है। मप्र कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने घोषणा कर दी है कि यदि कांग्रेस सरकार आई तो पुरानी पेंशन बहाल कर दी जाएगी। मप्र में यदि भाजपा ने इस मुद्दे पर फैसला नहीं लिया तो सरकारी कर्मचारियों और उनके परिवार के लगभग 20 लाख वोट खिसकना तय माना जा रहा है।
और अंत में….!
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इस सप्ताह तमिलनाडु पुलिस की एक टीम भोपाल में एक बड़े अखबार के दफ्तर पहुंची। वह संपादक को गिरफ्तार करना चाहती थी। भोपाल की पुलिस से सहयोग भी लिया। लेकिन पूरा मामला समझने पर यह पुलिस टीम उल्टे पांव लौट गई। दरअसल अखबार के बिहार एडीशन में तमिलनाडु के कथित वर्ग संघर्ष की खबर छपी थी। खबर तथ्यों पर आधारित नहीं थी इसलिए तमिलनाडु पुलिस ने अखबार के संपादक के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली। अखबार का मुख्यालय भोपाल है, इसलिए तमिलनाडु पुलिस भोपाल पहुंच गई। जब पुलिस को समझाया कि बिहार एडीशन का संपादक तो बिहार में ही मिलेंगे तो पुलिस वापस लौट गई।